दुल्हन के सोलह श्रृंगार... श्रीमती शीला एन. किशोर Sheela N Kishore Aesthetician Sheela's Salon DE Beaute
दुल्हन और श्रृंगार का चोली दामन का साथ है। प्राचीन काल से ही दुल्हन का सोलह श्रृंगार लोगों को आकर्षित करता रहा है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में भी श्रृंगार का विस्तृत विवरण दिया गया है। शास्त्रों में नारी के लिए सोलह श्रृंगार निर्धारित किये गये हैं। ग्रंथों में वर्णित सोलह श्रृंगार आदि काल से चली आ रही श्रृंगार परम्परा की समरूपता को दर्शाते हैं।
सोलह श्रृंगार से ही हर महिला के नैसर्गिक सौंदर्य में ऐसा निखार आता है कि क्या कहने। यही कारण है कि आज आधुनिकता की दौड़ में श्रृंगार के रूप भी बदल से गये हैं। तो आइये देखते हैं सोलह श्रृंगार की साज-सज्जा।
1- उबटन :- उबटन के प्रयोग से त्वचा मुलायम एवं आकर्षक बनती है। यह त्वचा को निखारता है। इसे लगाने से रोमछिद्रों के अंदर से सफाई हो जाती है। इसके साथ-साथ त्वचा पर उग आये अनावश्यक रोम भी धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं। उबटन शादी-विवाह के मौके पर ही दुल्हा-दुल्हन को लगाया जाता है जिससे उनकी सुन्दरता बढ़ जाती है। उबटन का लेप आटा, हल्दी, बेसन तथा तेल के मिश्रण से बनाया जाता। पहले सिर्फ शादी के वक्त ही दुल्हन या विवाहित उबटन लगाती थी, अब कुंवारी भी इसका प्रयोग करने लगी हैं।
2- मेंहदी :- मेंहदी शादी विवाह के साथ-साथ तीज त्यौहारों पर भी लगायी जाती है। इसका प्रयोग अविवाहितों में भी होता है। मेंहदी का प्रयोग हाथों के साथ-साथ पैरों को भी सुंदर बनाने के लिए किया जाता है।
3- स्नान और बालों को निखारना :-
श्रृंगार का सर्वप्रथम क्रम स्नान से प्रारंभ होता है। शास्त्रों में स्नान के भी कई प्रकार वर्णित किए गये हैं। स्नान के दौरान बालों को धोने के लिए आज कल बाजार में मिलने वाले तरह-तरह के शैम्पू तथा साबुन का भी उपयोग किया जा रहा है जबकि कुछ लोग शिकाकाई, आंवला तथा रीठा से अपने बाल धोते हैं।
बालों को विभिन्न स्टाइल में सजाया जाता है। जूड़ा चोटी आदि विभिन्न आवृत्तियां प्रचलित हैं। बालों में फूलों के गजरे आकर्षक ढंग से लगाना उनमें सौन्दर्य पैदा करता है। बालों को गुंथन कर जूड़ा बनाकर उसमें सोने के आभूषण सजाना भी दुल्हन के केश विन्यास का अहम हिस्सा है।
4- वस्त्र :- वस्त्रों के सही चयन के बिना सारा सौंदर्य कांतिहीन हो जाता है। प्राचीन युग में ही शीत, ग्रीष्म से बचने हेतु मनुष्य ने वृक्षों की छाल पशुओं की खाल से अपना तन ढकना प्रारंभ कर दिया था। कालांतर में सभ्यता के साथ वस्त्रों में भी काफी बदलाव आए। वस्त्रों को विभिन्न रंगों में विभिन्न वस्तुओं से सजाया भी जाने लगा। वस्त्रों को पहनना न केवल मर्यादा को व्यक्त करता है वरन सलीके से शरीर का भाव प्रदर्शन भी है।
अरमानों की तरह दमकते वस्त्र यूं तो अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग ही होते हैं मगर फिर भी दुल्हन के लिए ज्यादातर जगहों पर परिधान के रूप में बनारसी साड़ी या जरी की साड़ी का ही प्रयोग होता है जिसका रंग अक्सर लाल होता है। धीरे-धीरे इसमें बदलाव आने शुरू हो गए हैं।
5- हार :- हार पहनने के पीछे स्वास्थ्यगत कारण हंै। गले और इसके आस-पास के क्षेत्रों में कुछ दबाव बिंदु ऐसे होते हैं जिनसे शरीर के कई हिस्सों को लाभ पहुंचता है। इसी हार को सौंदर्य का रूप दे दिया गया है और श्रृंगार का अभिन्न अंग बना दिया है। रानीहार, चंदनहार, चंद्रहार, तनमणि, छागली आदि हार प्रचलन में हैं। हार महिलाओं को बहुत प्रिय रहा है।
6- बिंदिया :- सौंदर्य हेतु बिंदिया का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसे सौभाग्य का सूचक माना जाता है। शास्त्रों में बिंदिया लगाने के पीछे कई तर्क दिए गये हैं। माथे के बीचों बीच लाल रंग की यह बिंदी सजी होती है और इसके चारों ओर छोटी-छोटी सफेद बिंदिया भी होती है। इन्हें सुहाग की निशानी भी माना जाता है।
7- काजल :- आंखों को सुंदर बनाने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा के दृष्टिकोण से काजल का प्रयोग किया जाता है। इसे पलकों के ऊपर और नीचे की ओर इस तरह लगाया जाता हैं कि आंख अधिक चौड़ी
और आकर्षक लगती है। अब काजल के अलावा आई लाइनर और मसकारा का प्रयोग भी होने लगा है जिससे आंखें अधिक आकर्षक लगती हैं।
8- अधररंजन व महावर :- अधरों या होंठों की सुंदरता को बढ़ानें के लिए उन्हें रंगा जाता है। प्राचीन समय में पुष्पों के रस द्वारा यह कार्य पूरा किया जाता था। अब तो बाजार में विभिन्न प्रकार की सामग्री उपलब्ध है। महावर लाख से बनाया जाता है जिसका प्रयोग पैरों में किया जाता है। यह ज्यादातर शादी-विवाह या किसी खास अवसरों पर ही प्रयोग होता है। इसके प्रयोग से पैरों की रौनक खिल उठती है क्योंकि यह तरह-तरह की डिजाइनों में लगाया जाता है। महावर कुंवारी कन्याएं भी लगाना पसंद करती हैं।
9- नथ और कर्णफूल :- नाक में छेद करके उसमें विभिन्न आकारों की नथ पहनने की प्रथा है। सौंदर्य अभिवृद्घि के साथ-साथ मुख से संबंधित दबाव बिंदुओं के द्वारा मुख सौंदर्य भी बनाए रखने में नथनी सहयोगी होती है। नाक के बाएं हिस्से से लगा यह आभूषण कभी बहुत बड़ा होता था लेकिन अब यह छोटा होता जा रहा है। अपने आकार-प्रकार और पहनी जाने वाली दिशा में यह दुल्हन के क्षेत्र राज्य, धर्म, जाति का बोध भी देता हैं जबकि गले में हार की तरह कान में कर्णफूल भी एक वैवाहिक आभूषण है और सोलह श्रृंगार का एक अंग भी। इसमें झुमका लगा होता है।
10- चूड़ियॉ और कंगन :- कलाइयों के सौंदर्य और सौभाग्य के लिए चूड़ियॉ और कंंगन को पहना जाता है। शास्त्रों में इसका बहुत वर्णन मिलता है। बिना चूड़ियों और कंगन के मेंहदी लगे हाथ शोभा नहीं देते हैं। चूड़ियॉ सोने की होती हैं और उन पर मीनाकारी भी हो सकती है परन्तु वर्तमान परिवेश में विभिन्न तरह की चूड़ियॉ एवं कंगन बाजार में आ गये हैं।
11- कमरबंध :- कमर के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए कमरबंध का प्रयोग किया जाता है। दुल्हन की कमर पर चारों ओर से लपेटने वाला कमरबंध कई तरह से बनाया जाता है।
12- पैंजनिया :- पैरों में पहनने के लिए पैंजनिया का प्रयोग होता है। पैंजनिया में लगे घुंघरू दुल्हन के आगमन के शुभ संकेत से घर को गुंजा देते हैं। इनमें छोटे-छोटे घुंघरू लटके होते हैं जो चलने पर छम-छम की मधुर ध्वनियां निकालते हैं।
13- बिछुआ :- पांव की उंगलियों में बिछुआ को पहनने का रिवाज है। मेंहदी लगे पांवों की उंगलियों में बिछुआ सुंदर लगता है।
14- पादुका :- पांव को सुरक्षित तथा सुंदर रखने के लिए पादुका का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान परिवेश में तरह-तरह के सैण्डिल, चप्पल बाजार में आ चुकी हैं जिसका प्रयोग शादी-विवाह में धडल्ले से हो रहा है। इनको पहनने से पांवों की कोमलता बरकरार रहती है।
15- आरसी :- आरसी का अर्थ है दर्पण। यह दुल्हन का ऐसा आइना होता है जिसे वह गुपचुप अपनी उंगलियों में धारण कर सकती है। दुल्हन आरसी में खुद और पिया को निहारती है और ऐसे निहारती है कि उसे ऐसा करते हुए कोई नहीं देख सकता।
16- इत्र :- श्रृंगार में इत्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसे आकर्षित करने तक प्रयुक्त किया जाता रहा है। प्रारंभ में फूलों के अर्क से ही इत्र का निर्माण किया जाता था।